नेत्रहीन
उस समय की बात है जब मैं डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर गांव के अस्पताल में कुछ दिन के लिए गया था वहां ज्यादातर लोग अपने पेट का इलाज या सर्दी खांसी का इलाज कराने आते थे वही सामने पीपल का पेड़ था वहां एक लड़की रोज दवा खाने के सामने बैठी रहती थी शायद अंदर आने की हिचक थी गरीब थी शायद उसे किसी ने बताया होगा यह दवा खाना है एक दिन मैंने उससे पूछ लिया ना जाने क्या कशिश थी आंखों में अपने मन की आंखों से मुझे अपनी तरफ बुला रही थी मैंने पूछा तुम यहां क्यों बैठी हो उसने कहा एक हादसे में मेरी आंखें चली गई .